shiv puran
શનિવાર, 2 માર્ચ, 2019
विस्तार
इस पुराण में इसमें ११२ अध्याय एवं ११,००० श्लोक हैं। विद्वान लोग 'वायु पुराण' को स्वतन्त्र पुराण न मानकर 'शिव पुराण' और 'ब्रह्माण्ड पुराण' का ही अंग मानते हैं। परन्तु 'नारद पुराण' में जिन अठारह पुराणों की सूची दी गई हैं, उनमें 'वायु पुराण' को स्वतन्त्र पुराण माना गया है।
वायु पुराण की संक्षिप्त जानकारी
इस पुराण में वायुदेव ने श्वेतकल्प के प्रसंगों में धर्मों का उपदेश किया है। इसलिये इसे वायु पुरण कहते है। यह पूर्व और उत्तर दो भागों से युक्त है। जिसमें सर्ग आदि का लक्षण विस्तारपूर्वक बतलाया गया है, जहां भिन्न भिन्न मन्वन्तरों में राजाओं के वंश का वर्णन है और जहां गयासुर के वध की कथा विस्तार के साथ कही गयी है, जिसमें सब मासों का माहात्मय बताकर माघ मास का अधिक फ़ल कहा गया है जहां दान दर्म तथा राजधर्म अधिक विस्तार से कहे गये हैं, जिसमें पृथ्वी पाताल दिशा और आकाश में विचरने वाले जीवों के और व्रत आदि के सम्बन्ध में निर्णय किया गया है, वह वायुपुराण का पूर्वभाग कहा गया है। मुनीश्वर ! उसके उत्तरभाग में नर्मदा के तीर्थों का वर्णन है, और विस्तार के साथ शिवसंहिता कही गयी है जो भगवान सम्पूर्ण देवताओं के लिये दुर्जेय और सनातन है, वे जिसके तटपर सदा सर्वतोभावेन निवास करते है, वही यह नर्मदा का जल ब्रह्मा है, यही विष्णु है, और यही सर्वोत्कृष्ट साक्षात शिव है। यह नर्मदा जल ही निराकार ब्रह्म तथा कैवल्य मोक्ष है, निश्चय ही भगवान शिवने समस्त लोकों का हित करने के लिये अपने शरीर से इस नर्मदा नदी के रूप में किसी दिव्य शक्ति को ही धरती प्रर उतारा है। जो नर्मदा के उत्तर तट पर निवास करते है, वे भगवान रुद्र के अनुचर होते है, और जिनका दक्षिण तट पर निवास है, वे भगवान विष्णु के लोकों में जाते है, ऊँकारेश्वर से लेकर पश्चिम समुद्र तट तक नर्मदा नदी में दूसरी नदियों के पैतीस पापनाशक संगम है, उनमे से ग्यारह तो उत्तर तटपर है, और तेईस दक्षिण तट पर। पैंतीसवां तो स्वयं नर्मदा और समुद्र का संगम कहा गया है, नर्मदा के दोनों किनारों पर इन संगमों के साथ चार सौ प्रसिद्ध तीर्थ है। मुनीश्वर ! इनके सिवाय अन्य साधारण तीर्थ तो नर्मदा के पग पग पर विद्यमान है, जिनकी संख्या साठ करोड साठ हजार है। यह परमात्मा शिव की संहिता परम पुण्यमयी है, जिसमें वायुदेवता ने नर्मदा के चरित्र का वर्णन किया है, जो इस पुराण को सुनता है या पढता है, वह शिवलोक का भागी होता है।
શુક્રવાર, 23 નવેમ્બર, 2018
Shiv puran
Shiv puran episode 1
शिव पुराण
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
शिव पुराण | |
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Shiv puran episode 1 शिव, गीताप्रेस गोरखपुर का आवरण पृष्ठ | |
लेखक | वेदव्यास |
देश | भारत |
भाषा | संस्कृत |
श्रृंखला | पुराण |
विषय | शिव भक्ति |
प्रकार | हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ |
पृष्ठ | २४,००० श्लोक |
इस पुराण में परात्पर ब्रह्म शिव के कल्याणकारी स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना का विस्तृत वर्णन है। इसमें इन्हें पंचदेवों में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। शिव-महिमा, लीला-कथाओं के अतिरिक्त इसमें पूजा-पद्धति, अनेक ज्ञानप्रद आख्यान और शिक्षाप्रद कथाओं का सुन्दर संयोजन है। इसमें भगवान शिव के भव्यतम व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। शिव- जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता है, विश्व चेतना हैं और ब्रह्माण्डीय अस्तित्व के आधार हैं। सभी पुराणों में शिव पुराण को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होने का दर्जा प्राप्त है। इसमें भगवान शिव के विविध रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का विशद् वर्णन किया गया है।
'शिव पुराण' का सम्बन्ध शैव मत से है। इस पुराण में प्रमुख रूप से शिव-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। प्राय: सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। किन्तु 'शिव पुराण' में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है।
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